
रफ़्तार मीडिया
उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ भले ही किसानों को खेती से जुड़ी बेहतर सुविधाएं देने के लाख वादे करते आकेँ हैं. फिर चाहे वो खेती के दौरान संजीवनी कही जाने वाली खाद ही क्यो न हो पर वही खाद बुंदेली अन्नदाता के लिए किसी सुनहरे सपने से अब कम नही मानी जा रही है. प्रदेश में काबिज ये वही योगी सरकार हैं. जिसने किसानों को सुख सुविधा देने के तमाम वादे किए हैं. इन सब के बाउजूद उन्ही के मुलाजिम माने जाने वाले अफसर ही अन्नदाताओं को उचित दामों पर खाद दिलाने में नाकाम साबित हो रहें हैं. या यूं कहें कि बाजार में खुलेआम खाद की कालाबाजारी की जा रही है और सरकार के मुलाजिम लीपापोती कर कार्यवाही करने से कतरा रहें हैं.
बुन्देलखण्ड को पलायन की समस्या से अब तक निजात नही मिल सकी है. गांव की गलियां सूनी पड़ी हुई हैं और बंद घरों में लटकते ताले सरकारी अनदेखी की दुहाई देने को मजबूर हैं. प्रदेश सरकार में वादे तमाम किए जा रहें हैं लेकिन हालात अभी तक जस के तस बने हुए हैं. थोड़ा बहुत खेती के दौरान जो बच रहा है उसे अन्ना मवेशी ठिकाने लगाने में कोई कौताही नही बरत रहे हैं. सिर्फ इतना ही नही अगर किसान जैसे तैसे खेती करना भी चाहे तो उसे खाद की कालाबाजारी ने घेर रखा है. अब ऐसी सूरत में बुंदेली अन्नदाता आखिर करे भी तो क्या. जब पलायन. अन्ना मवेशी और खाद की बीमारी नासूर बन चुकी है.
जनपद महोबा में किसानों द्वारा अब तक खाद न मिल पाने के चलते कई मर्तबा प्रदर्शन किया जा चुका हैं. सरकारी अफसरों द्वारा झूठा आश्वासन देकर अन्नदाताओं को समझाने बुझाने का सिलसिला भी बदस्तूर बरकरार है. सरकारी समितियों में खाद लेने आए किसानों को खाली हांथ लौटाया जा रहा है. गैर सरकारी दुकानों में खाद की कालाबाजारी का खेल खुलेआम खेला जा रहा है. जनपद के अफसरों से कालाबाजारी की शिकायत कई बार की जा रही है लेकिन क्या बताएं साहब इस सिस्टम नाम की बीमारी ने अफरशाही को बुरी तरह अपनी अपनी गिरफ्त में ले रखा है. दैवीय आपदा से जूझता किसान पहले भी परेशान था और आज भी है.
बुन्देलखण्ड के महोबा जनपद में पनवाड़ी विकासखण्ड की गैर सरकारी दुकानों में डीएपी खाद को महंगे दामों में दिन दोपहर बेचा जा रहा है. एक ओऱ सरकारी अफसर किसानों को पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध कराने के आश्वासन देकर शांत करा देतें हैं. वहीं खाद की कालाबाजारी अपने चरम पर जा पहुची है. खेत में बुआई का मौसम नजदीक आ चुका है और डीएपी खाद ने अभी भी अन्नदाताओं से खासी दूरी बना रखी है. किसान खाद को लेकर इस कदर मजबूर है कि खाद की बोरी में छपी कीमत से कहीं ज्यादा रुपए देने को भी तैयार है. वहीं सूबे के मुखिया की अगर माने तो खाद की कालाबाजारी करने वालों को बख्शा नही जाएगा जैसे तमाम वादे किए जा रहें हैं. अन्नदाताओं की माने तो कई दिनों तक चक्कर काटने के बाद भी उन्हें सरकारी दामों पर खाद नही मिल पा रही है. जिसके चलते उनकी मजबूरी का फायदा खुलेआम लिया जा रहा है.
पनवाड़ी विकासखण्ड के अधिकांश गांव के किसानों को खाद न मिल पाने की समस्या से जूझना पड़ रहा है...ऐसे में स्वम् को जनप्रतिनिधि कहने वाले भी दूर तक नजर नही आ रहें हैं. सरकारी समितियों में खाद की किल्लत बनी हुई है. 1350 रुपए की डीएपी खाद की बारी को 1600 रुपए में बेचा जा रहा...वहीं जनपडी के काबिज अफसर चुप्पी साधे तमाशा देख रहें हैं. कई बार सूचना देने के बाउजूद भी गैर सरकारी दुकानों पर खाद की कालाबाजारी पाए जाने पर भी कार्यवाही नही की जा रही है. या यूं कहें कि खाद से जुड़ी इस विकराल समस्या को साफ तौर पर नजरअंदाज किया जा रहा है. भले ही इसके पीछे कारण कुछ भी हो.