SIR in Bengal: पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर सियासी संग्राम तेज, ममता बनर्जी आज करेंगी रैली
पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। निर्वाचन आयोग मंगलवार से यह प्रक्रिया शुरू कर रहा है, जो 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक रूप से बेहद अहम मानी जा रही है। इस दौरान राज्य के सभी दल मतदाता सूची में अपने समर्थन को मजबूत करने की रणनीति में जुट गए हैं।
टीएमसी ने बूथ स्तर पर टीम की कमान संभाली
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने अपनी बूथ स्तरीय टीमों को सक्रिय कर दिया है ताकि कोई भी “वास्तविक मतदाता” सूची से न हटे। 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं की जांच करेंगे। इस बीच ममता बनर्जी आज कोलकाता में बड़ी रैली निकालेंगी।
रैली से पहले उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें उन्होंने लिखा — “कृपया इस गीत को सुनें, जिसे मैंने लिखा और संगीतबद्ध किया है। यह हमारी रैली से पहले के विचारों को दर्शाता है।” इस गीत को राज्य के मंत्री इंद्रनील सेन ने गाया है।
बीजेपी और टीएमसी आमने-सामने
बीजेपी ने मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी, जबकि टीएमसी ने इस पर सवाल उठाए हैं। तृणमूल का आरोप है कि निर्वाचन आयोग “बीजेपी के दबाव में काम कर रहा है” और अल्पसंख्यक व हाशिए पर पड़े वर्गों के मताधिकार को खत्म करने की साजिश हो रही है।
दूसरी ओर, बीजेपी ने दावा किया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य की मतदाता सूची में 40 लाख से अधिक फर्जी नाम शामिल थे। पार्टी का कहना है कि इस विशेष गहन पुनरीक्षण से कम से कम 1 करोड़ डुप्लिकेट मतदाता नाम हटाए जाएंगे, जिससे मतदान प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी।
राह तय: दिसंबर से फरवरी तक की प्रक्रिया
निर्वाचन आयोग के कार्यक्रम के अनुसार —
4 नवंबर से 4 दिसंबर: BLO घर-घर जाकर सत्यापन करेंगे।
9 दिसंबर: मसौदा मतदाता सूची जारी होगी।
8 जनवरी तक: दावे और आपत्तियां दर्ज होंगी।
7 फरवरी 2026: अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, SIR प्रक्रिया बंगाल में प्रशासनिक और संगठनात्मक ताकतों के बीच सीधी टक्कर का मंच बन चुकी है। 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले यह सिर्फ एक प्रशासनिक कवायद नहीं, बल्कि बंगाल की राजनीति में आने वाले समीकरणों की झलक भी है।
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