Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, अनुच्छेद 329 बना अहम मुद्दा
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार 7 अक्टूबर को अपना अंतिम फैसला देने जा रहा है। इस बीच, चुनाव आयोग ने 6 अक्टूबर को बिहार में चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 329 की वजह से सुप्रीम कोर्ट के किसी बड़े फैसले की संभावना कम दिखाई दे रही है।
अनुच्छेद 329 क्या है?
संविधान का अनुच्छेद 329 चुनाव आयोग को यह अधिकार देता है कि वह चुनाव प्रक्रिया को बिना बाधा के पूरा कराए।
खण्ड (क): सीटों के परिसीमन या आवंटन से संबंधित कानूनों की वैधता पर अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता।
खण्ड (ख): किसी चुनाव को केवल विधानमंडल द्वारा पारित कानून के तहत ही चुनौती दी जा सकती है।
इसका उद्देश्य है कि न्यायपालिका चुनाव आयोग के काम में हस्तक्षेप न करे और आयोग निष्पक्ष रूप से चुनाव संपन्न करा सके।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और संभावना
विधायी मामलों के जानकार अयोध्यानाथ मिश्र के अनुसार, चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी हैं। इसलिए मतदाता सूची पर कोई ऐतिहासिक फैसला आने की संभावना बहुत कम है। अगर सुप्रीम कोर्ट कोई सुझाव भी देता है, तो वह आमतौर पर सकारात्मक मार्गदर्शन होगा, न कि चुनाव को रोकने वाला।
अगर सुप्रीम कोर्ट बाधा डाले तो क्या होगा?
अनुच्छेद 329 चुनाव आयोग को निष्पक्ष और बिना बाधा चुनाव कराने का अधिकार देता है।
चुनाव की घोषणा के बाद कोर्ट के फैसले से चुनाव पर सीधा असर पड़ना असंभव है।
वर्तमान सरकार का कार्यकाल 22 नवंबर 2025 को समाप्त हो रहा है, इसलिए चुनाव इस तारीख से पहले संपन्न होना अनिवार्य है।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का कोई भी निर्णय चुनाव को प्रभावित करने वाला नहीं होगा।
चुनाव आयोग के अधिकार
चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। इसे अधिकार प्राप्त हैं कि वह:
लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव कराए।
आदर्श आचार संहिता लागू करे।
चुनाव आयोग का लक्ष्य है कि चुनाव निष्पक्ष, भयमुक्त और लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हों।
मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर सवाल
जब चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का सत्यापन शुरू किया, तो कुछ राजनीतिक पार्टियों ने आरोप लगाया कि सत्यापन के जरिए गरीबों और पिछड़ों को मतदान से रोका जा सकता है।
आरंभ में आधार को मान्यता नहीं दी गई थी, लेकिन बाद में आयोग ने आधार को सत्यापन के लिए मान्य कर दिया।
आयोग ने भरोसा दिलाया कि किसी भी योग्य नागरिक का नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।
अयोध्यानाथ मिश्र कहते हैं कि कोई भी मतदाता सूची 100% सटीक नहीं हो सकती। जैसे कि किसी व्यक्ति का देहांत हो जाना या परिवार का किसी अन्य क्षेत्र में चले जाना मतदान में बाधा डाल सकता है।
बिहार में चुनाव दो चरणों में होंगे:
6 और 11 नवंबर को मतदान
14 नवंबर को परिणाम घोषित
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