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Bihar Caste Politics: बिहार में जाति आधारित राजनीति..... चिराग..मांझी सहनी और कुशवाहा की ताकत कितनी?

पटना: बिहार (Bihar) की राजनीति में जाति सिर्फ एक सामाजिक पहचान नहीं बल्कि सत्ता का रास्ता तय करने वाला बड़ा फैक्टर बन चुकी है। चाहे लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव हर राजनीतिक दल टिकट बंटवारे से लेकर गठबंधन तक में जातीय गणित को सबसे ऊपर रखता है।

राज्य की सियासी जमीन पर कुछ खास नेता अपनी जाति पर टिके राजनीतिक दलों की कमान संभाल रहे हैं। चिराग पासवान जीतनराम मांझी मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा — ये चार चेहरे अलग-अलग जातीय समूहों के नेता माने जाते हैं और सीमित संख्या में होने के बावजूद ये जातियां चुनावी परिणामों को प्रभावित करने की ताकत रखती हैं।

चिराग पासवान – दलितों की आवाज
लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) (रामविलास) के नेता चिराग पासवान (chirag paswan) यानी जाति से आते हैं जो अनुसूचित जातियों में शामिल है। बिहार में इनकी आबादी करीब 5.31% है। भले ही यह संख्या सत्ता दिलाने के लिए काफी न हो लेकिन गठबंधन में इनका साथ बड़े अंतर से जीत दिला सकता है। चिराग एनडीए के साथ हैं और अपनी पार्टी को सर्वसमाज में फैलाने की कोशिशों में जुटे हैं।

जीतनराम मांझी – महादलितों के भरोसे
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (jitan ram manjhi) की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (Hindustani Awam Morcha) मुसहर जाति के समर्थन पर टिकी है। मुसहर बिहार की सबसे पिछड़ी जातियों में से एक है जिसकी जनसंख्या लगभग 3% है। लेकिन महादलित वर्ग कुल मिलाकर करीब 14% है जो कई सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है। मांझी भी फिलहाल एनडीए का हिस्सा हैं।

मुकेश सहनी – मल्लाह समुदाय की उम्मीद
विकासशील इंसान पार्टी (Vikassheel Insaan Party) (VIP) के नेता मुकेश सहनी (mukesh sahani) निषाद यानी मल्लाह समुदाय से आते हैं। सहनी जाति की आबादी तो 2.61% है लेकिन पूरी निषाद जातियों को मिला लें तो यह आंकड़ा लगभग 9.65% तक पहुंच जाता है। मुजफ्फरपुर दरभंगा और खगड़िया जैसे इलाकों में इनका असर खासा है। फिलहाल वीआईपी महागठबंधन के साथ है।

उपेंद्र कुशवाहा – कोइरी समाज के प्रतिनिधि
राष्ट्रीय लोक जनता दल (Rashtriya Lok Morcha) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा (upendra kushwaha)कोइरी जाति से हैं जिनकी जनसंख्या बिहार में करीब 4.21% है। कोइरी और कुर्मी मिलकर लव-कुश समीकरण बनाते हैं जिसने नीतीश कुमार को सत्ता तक पहुंचाया। कुशवाहा की पार्टी एनडीए में शामिल है और भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा है।

जाति के बिना बिहार की राजनीति अधूरी
बिहार में जातीय पहचान के बिना न नेता बनना संभव है न सरकार। यही वजह है कि छोटी जाति आधारित पार्टियां भी गठबंधन की राजनीति में बड़ी भूमिका निभा रही हैं। आने वाले चुनाव में ये पार्टियां फिर से किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकती हैं।

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